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LifeStories

ऐसी कहानियाँ जो दुनिया देखने का नजरिया बदल दे |

बाई अभी तक नही आई थी और पति बैंक गए हुए थे । अखबार पढ़ने के बाद कुछ सहेज कर रखी पति्रकाओं को देखा फिर अन्य कामों की 
व्यवस्था के बीच भी रोज की लिखा पड़ी की योजनाएं बनाती रही | झाड़ू पोचा करने की हिम्मत  न थी और न ही इच्छा ,  फिर भी 
'आंंगन बुहार लिया जाए ' सोचकर झाडू लेकर बाहर आई | 'बाप रे' आप तो बड़ी विकट है | एक बजे झाड़ू लगा रही हैं | पड़ोसन ने कटाक्ष 
किया और उसके साथ खड़ी तीन चार सि्त्रयां मुस्कुराने लगी | मैंने पूछा झाड़ू लगाने का भी कोई समय होता है क्या ? और यदि होता भी 
हो तो उसे अपने घर में लागू कर सकती है | यदि मैं आपसे पुछुं कि क्या आपने अखबार पढ़ा ? कोई समाचार देखा ? कोई कहानी कविता 
पढ़ी ? सबकी जीवनशैली और काम करने का तरीका अलग-अलग होता है , व्यर्थं की दखलअंदाजी न करे तो बेहतर है ? 
इतने में बाई आ गयी , आते ही उसने मेरे हाथ से झाड़ू ले लिया और बोली 'दीदी, आज राशन लेने कंट्रोल गयी थी , पर वहाँ पहुँची तो वह 
बंद मिला | इस वजह से देर हो गयी |' बाई की बात सुनते ही वे स्त्रिया वहा से खिसक गई | मैंने  अंदर आकर शब्दकोश में 

'विकट शब्द खोजा | विकट , मुश्किल , दुर्गम , भोंडा , भयानक , वक्र | एक एक अर्थ की व्याख्या करके मुस्कुरा  
दी | संभवत: वे महिलाएं सहींं  
थी , क्योंकि 'विकट' की उपाधि पाकर मुस्कुराना विकट व्यक्ति के ही वश में हैंं | 

May 31, 2018 No comments

वीना सहगल 

   मैं एक बड़ी संस्था में कार्यरत हूं | सरकार संस्था से विभिन्न विषयों पर सूचना मांगती है और हमें संबंधित विभागों से वह सूचना एकत्रित कर ईमेल करना पङती है |  इसी संबंध में पिछले दिनों हुआ एक अनुभव मुझे नई सीख दे गया | एक सुचना को एकत्रित करने के लिए मेरी सहयोगी ने संबंधित विभागाध्यक्ष को पत्र लिख दिया और फिर सारा दिन दौड़ भाग कर सूचना एकत्र कर शाम को ईमेल किया |  मुझे उसकी कार्यशैली पर गुस्सा आया | मैंने कहा कि "तुम यूं दौड़ भाग कर सूचना क्यों एकत्रित  करती रही , फ़ोन पर ही माँगवा लेतीं |" वह कुछ न बोली | एक दिन मेरी सहयोगी छुट्टी पर थी तो यह काम मुझे ही करना पडा |   मैंने कई पत्र भेजें और फ़ोन भी किए लेकिन कोई भी सूचना पाने में असफ़ल रही | जब सभी उपाय करके देख लिए तो फिर मुझे खुद ही उस विभाग में जाना पड़ा | तब जाकर शाम सात बजे तक मैं काम पूरा कर पाई और फिर आकर मैंने  ईमेल किया | तब जाकर मैंने समझा कि यह काम वाकई में इतनी आसानी से नहीं हो सकता हैं | मैंने जान लिया कि किसी को  कुछ भी कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल |

May 29, 2018 No comments
डॉ. सुषमा जुक्ला

मैं ट्रेन में बैठी थी की मेरा ध्यान सामने वाली सीट पर बैठी बुुजुर्ग महिला पर गया | कारण था उनके हाथ में मौजूद ऊन और सलाइयां | अमूमन आजकल महिलाअों के हाथ में भी मोबाइल ही दिखता है |          कुछ देर बाद उन्होंने पूछा - 'कहाँँ जा रही हो ? ' और बातों का सिलसिला चल पडा | मुझसे बातें करते हुए भी बराबर उनके हाथ बुनाई कर रहे थे |    नागदा स्टेशन आते-आते उन्होंने एक ख़ूबसूरत टोप तैयार कर लिया था | मैंने उत्सुुकतावश पूछा - 'घर में कोई नया मेहमान आने वाला हैं  |'    वे  हसी और बोली की मेरे घर में तो नहीं , लेकिन मातृछाया में तो नए मेहमान आते ही रहते हैं |मुझे बात समझ नही आई तो उन्होंने सारी  बातें विस्तार से बताई । यह मेरा समय गुज़ारने का तरीका है | मुझे सत्संग और कथा वाचनों में जाने में कोई रूचि नहीं है | जब से सेवानिवृत हुई हूँ , समय काटना बड़ा मुश्किल था |  बेटा - बहूू अपने कम में और पोता - पोती पढ़़ाई  में | इसलिये एक दिन बाज़ार में जाकर ऊन ले आई और बुनना शुरू कर दिया |   बहु ने कहा की किसके लिए बुन रहे हो माँ ? आजकल के बच्चे तो रेडीमेड और महंगे कपड़े ही पसंद करते हैं | बात तो सही थी | लेकिन मैंने स्वेटर बुनना जारी रखा और पहला स्वेटर अपनी कामवाली  बाई के लड़के को उपहार में दिया | तब विचार आया कि क्यों न अनाथ बच्चों के लिए बुनना जारी रखुं | बस तभी से छोटे - मोटे मोज़े ,टोपे , स्वेटर आदि बुनती रहती हूँ | साल भर में इतने सेट बुन लेती हूँ की दिवाली पर मातृछाया में सभी बच्चों को एक-एक सेट दे सकूँ |मैंने पूछा ," इसमें तो बहुत खर्चा आता होगा , ऊन तो खरीदना ही पड़ता हैं ?' वे मुस्कुरा कर बोली "सरकार इतनी पेंशन देती हैं , उसमें से थोड़ा खर्च कर भी दिया तो क्या ?" आजकल इससे ज्यादा तो बच्चे एक बार बाहर खाना खाने में खर्च कर देते हैं | सबसे बड़ी बात कि इससे मन को बहुत संतोष मिलता है | साथ ही समय का सदुपयोग भी हो जाता है | अब तो कई लोग मुझसे बेबी ब्लैनेट और बेबी सूट अादि बनाने का अनुरोध करते है |'मैंने उनके काम से बेहद प्रभावित हुई | जिस तरह उन्होंने समय का सदुपयोग  कर अपने हुनर को सार्थकता दी है वह काबिले तारिफ़  हैं |

May 27, 2018 No comments
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