कथनी करनी का अंतर

by - May 29, 2018

वीना सहगल 

   मैं एक बड़ी संस्था में कार्यरत हूं | सरकार संस्था से विभिन्न विषयों पर सूचना मांगती है और हमें संबंधित विभागों से वह सूचना एकत्रित कर ईमेल करना पङती है |  इसी संबंध में पिछले दिनों हुआ एक अनुभव मुझे नई सीख दे गया | एक सुचना को एकत्रित करने के लिए मेरी सहयोगी ने संबंधित विभागाध्यक्ष को पत्र लिख दिया और फिर सारा दिन दौड़ भाग कर सूचना एकत्र कर शाम को ईमेल किया |  मुझे उसकी कार्यशैली पर गुस्सा आया | मैंने कहा कि "तुम यूं दौड़ भाग कर सूचना क्यों एकत्रित  करती रही , फ़ोन पर ही माँगवा लेतीं |" वह कुछ न बोली | एक दिन मेरी सहयोगी छुट्टी पर थी तो यह काम मुझे ही करना पडा |   मैंने कई पत्र भेजें और फ़ोन भी किए लेकिन कोई भी सूचना पाने में असफ़ल रही | जब सभी उपाय करके देख लिए तो फिर मुझे खुद ही उस विभाग में जाना पड़ा | तब जाकर शाम सात बजे तक मैं काम पूरा कर पाई और फिर आकर मैंने  ईमेल किया | तब जाकर मैंने समझा कि यह काम वाकई में इतनी आसानी से नहीं हो सकता हैं | मैंने जान लिया कि किसी को  कुछ भी कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल |

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